नमस्कार दोस्तों, प्रत्येक मनुष्य के अंदर अनंत शक्तियों का भंडार होता है किंतु अधिकांश मनुष्य इस अनंत शक्तियों के भंडार का सदुपयोग नहीं कर पाते हैं. उनकी यह अनंत शक्तियां सोयी ही रहती है.
यहां तक कि उनके जीवन की अंतिम घड़ी भी आ जाती है लेकिन वह अपनी सोई हुई शक्तियों को नहीं जगा पाते हैं.
जीवन का यथार्थ यह है कि अधिकांश लोग ऐसे होते हैं, जो ईश्वर द्वारा प्रदत अपनी इन अनंत शक्तियों और असीमित संभावनाओं के बारे में विचार तक नहीं करते हैं.
ऐसे लोग अपने जीवन की शक्ति का हजारवां हिस्सा भी उपयोग नहीं कर पाते हैं. हां कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने जीवन की चौथाई या आधे हिस्से का उपयोग करने में सफल हो जाते हैं. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या ना के बराबर है.
इस प्रकार से हमारी बहुत सी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का प्रयोग आधा- अधूरा भी नहीं हो पाता है.
इसी कारण मनुष्य अपने स्वयं के आत्मा के समक्ष हीन भावना के साथ जीवन व्यतीत करता है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह अपनी आत्मा को अपने शरीर की अग्नि के प्रकाश से प्रकाशित नहीं कर पाता है. इस प्रकार उसके शरीर की अग्नि उसके शरीर में बुझी- बुझी सी जलती है.
व्यक्ति का सक्रिय और संरचनात्मक जीवन ही उसे इस स्थिति से उबार सकता है.
यदि कोई मनुष्य स्वयं ही दीन -हीन बना रहता है तो उसके लिए इससे बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं होगा.
व्यक्ति का सार्थक प्रयास किसी भी कठिनाई को आसान बना देता है, इसलिए हर एक व्यक्ति को प्रयास करने की मनोभावना को विकसित करने की आवश्यकता है.
हमारे स्वयं के प्रयास ही हमें वहां पर पहुंचा देते हैं जहां पहुंचकर हमें किसी की मदद की आवश्यकता नहीं रह जाती है. हमें इस प्रकार के प्रयासों के प्रति सदैव सजग रहने की आवश्यकता है.
जिस प्रकार जमीन को खोदने पर जल स्त्रोत मिलते हैं, ठीक उसी प्रकार से जीवन को खोजने से शक्ति स्त्रोत की प्राप्ति होती है.
इसलिए जिस मनुष्य को अपने आप की पूर्णता अनुभव करनी होती है, वह सदैव सकारात्मक रूप से सक्रिय सजग और सतर्क रहता है.
जबकि अन्य लोग सोच विचार और तर्क - वितर्क में ही उलझे रहते हैं.
सकारात्मक व्यक्ति अपने विचारों को क्रियात्मक रूप में परिणीत कर लेते हैं.
तो दोस्तों हमारा आज का आर्टिकल आपको कैसा लगा , आप हमें कमेंट करके ज़रूर बताइए . अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आयी हो तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तों एवं रिश्तेदारों को जरुर शेयर कीजिए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इस पोस्ट को पढ़ सकें .धन्यवाद्.
यहां तक कि उनके जीवन की अंतिम घड़ी भी आ जाती है लेकिन वह अपनी सोई हुई शक्तियों को नहीं जगा पाते हैं.
जीवन का यथार्थ यह है कि अधिकांश लोग ऐसे होते हैं, जो ईश्वर द्वारा प्रदत अपनी इन अनंत शक्तियों और असीमित संभावनाओं के बारे में विचार तक नहीं करते हैं.
ऐसे लोग अपने जीवन की शक्ति का हजारवां हिस्सा भी उपयोग नहीं कर पाते हैं. हां कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने जीवन की चौथाई या आधे हिस्से का उपयोग करने में सफल हो जाते हैं. लेकिन ऐसे लोगों की संख्या ना के बराबर है.
इस प्रकार से हमारी बहुत सी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का प्रयोग आधा- अधूरा भी नहीं हो पाता है.
इसी कारण मनुष्य अपने स्वयं के आत्मा के समक्ष हीन भावना के साथ जीवन व्यतीत करता है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह अपनी आत्मा को अपने शरीर की अग्नि के प्रकाश से प्रकाशित नहीं कर पाता है. इस प्रकार उसके शरीर की अग्नि उसके शरीर में बुझी- बुझी सी जलती है.
व्यक्ति का सक्रिय और संरचनात्मक जीवन ही उसे इस स्थिति से उबार सकता है.
यदि कोई मनुष्य स्वयं ही दीन -हीन बना रहता है तो उसके लिए इससे बड़ा पाप कोई दूसरा नहीं होगा.
व्यक्ति का सार्थक प्रयास किसी भी कठिनाई को आसान बना देता है, इसलिए हर एक व्यक्ति को प्रयास करने की मनोभावना को विकसित करने की आवश्यकता है.
हमारे स्वयं के प्रयास ही हमें वहां पर पहुंचा देते हैं जहां पहुंचकर हमें किसी की मदद की आवश्यकता नहीं रह जाती है. हमें इस प्रकार के प्रयासों के प्रति सदैव सजग रहने की आवश्यकता है.
जिस प्रकार जमीन को खोदने पर जल स्त्रोत मिलते हैं, ठीक उसी प्रकार से जीवन को खोजने से शक्ति स्त्रोत की प्राप्ति होती है.
इसलिए जिस मनुष्य को अपने आप की पूर्णता अनुभव करनी होती है, वह सदैव सकारात्मक रूप से सक्रिय सजग और सतर्क रहता है.
जबकि अन्य लोग सोच विचार और तर्क - वितर्क में ही उलझे रहते हैं.
सकारात्मक व्यक्ति अपने विचारों को क्रियात्मक रूप में परिणीत कर लेते हैं.
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2 comments
Very nice article
interesting information
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